Wednesday, 21 March 2012

कली का जीवनचक्र


कली चटकी
खिली/खिलखिलाई
पुष्प बनी
हंसी/मुस्कराई
महमहाई
भंवरों से गुननगुनाई
शरमाई/हरषाई/मदमाई
मदनोत्सव मनाया/पराग लुटाया
उम्र पूरी कर मुरझाई
साख से झर गई
मिट गई।

कली के इस जीवन-चक्र में
उल्लास है
प्रेम है
समर्पण है
बैर और युद्ध कहीं नहीं है
मनुष्य के जीवन में युद्ध ही युद्ध हैं, क्यों?

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