मैं राम भरोसे वल्द गुलामचंद की मृतात्मा
चाहती हूं कि आजाद भारत की सर्वोच्च अदालत
मेरी इस चिट्ठी को याचिका माने
वह जाने कि आजादी मिलने के बाद सत्ता की बंदरबांट
आम नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन
शिक्षा में विसंगति
राष्ट्रभाषा हिन्दी का अपमान
मुटठी-भर धनाढ्यों के हाथों में दौलत का सिमटना
और विकसित यांत्रिक युग में भी गरीब की गरीबी का न मिटना
क्योंकर और किसकी शह पर हुआ?
उन दोषियों को पहचाने
अदालत इस पर भी विचारे
कि न्याय क्यों बहुत महंगा और लंबा है?
सर्वोच्च अदालत में पढ़ तो ली जाएगी न
मेरे पत्र की भाषा और लिखाई
या हिन्दी भाषा से वहां भी चल रही है रुसवाई?
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