Friday, 16 March 2012

हुजूर!


हुजूर!
मेरी बात मान जाइएगा
अब आप सरकारी दौरे पर
मेरे शहर मत आइएगा
मझे क्षमा कर दें
मेरी मानें और अपना दौरा रद्द कर दें।

हुजूर!
मेरे शहर का मिजाज आजकल कुछ गर्म है
अन्यथा न लें
आपकी हिफाजत की सोचना मेरा धर्म है
न जाने आजकल मेरे शहर को क्या हो गया है?
यहां नई पीढ़ी का हर आदमी
पोस्टर बनकर दीवारों पर चस्पां हो गया है।

हुजूर!
पोस्टर का काम दूसरों को हड़काना होता है
सही शब्दों में कहें तो भड़काना होता है
यहां पोस्टर बना हर मौन चेहरा
खूंखार आंखों से जैसे दे रहा है शहर का पहरा
पोस्टर बने हर चेहरे की एक आंख में
ज्वालामुखी खौल रहा है
देखकर लगता है जैसे--
उड़ने से पहले बाज अपने पंख तौल रहा है
और दूसरी आंख में
हसरतों के महल बन रहे हैं
गुलशन खिल रहे हैं।

हुजूर!
ये बदला हुआ माहौल
कुछ सिरफिरों की ये बेजा हरकतें
बदशकूनी का इजहार करती हैं
कुछ गलत हो जाने का इशारा करती हैं
आपका आना शायद आपके हक में अच्छा न रहे
इसलिए, मेरी बात मान जाइएगा
अब आप सरकारी दौरे पर
मेरे शहर मत आइएगा।

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