Monday, 12 March 2012

अपनों के सुगंध वाली चिट्ठियां अब नहीं आतीं


डाकिया रोज आता है मोहल्ले में
बांटता है डाक भी
किन्तु वे मिठियाती-गुदगुदाती
डबडबाती-सहराती
अपनों के संबोधन वाली चिट्ठियां अब नहीं आतीं।

जैसे चली गई हों स्थानांतरित होकर/तरक्की पर
लाता है डाकिया
तरह-तरह के बिल
अखबार-मैगजीन
शादियों के छपे हुए निमंत्रण-पत्र
बच्चों के परीक्षाफल और नौकरियों के काल लैटर
सरकारी नोटिस
पर हस्तलिखित अक्षरों की पहचान वाली
अपनों की सुगंध वाली चिट्ठियां अब नहीं आतीं।

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