महाकवि तुलसीदास ने
रामचरित मानस की रचना से पहले
दुष्टों का स्मरण कर उनकी अभ्यर्थना की थी
कि वे अपनी दुष्टता की छाया से उन्हें बचाए रखें
मेरा भी मानना है इसी तरह हर सभ्य नागरिक को
सामाजिक जीवन में कदम रखते ही
पुलिस की अभ्यर्थना करनी चाहिए
कि वह उसके सम्मान को कोई ठेस न पहुंचाए
ईश्वर से प्राथना करनी चाहिए
कि वह पुलिस की छाया से भी उसे दूर रखे
विद्वानों का तर्क है :
बिना पुलिस समाज में कानून व्यवस्था चौपट हो जाएगी
लेकिन मेरे कड़वे तजुर्बे का तर्जुमा है :
पुलिस ही करती है कानून व्यवस्था को चौपट
सच मानिए, पुलिस के नाम से भूत भी भागते हैं
कानून और आदमी की तो बिसात ही क्या
पुलिस दिन को रात कर सकती है और रात को दिन
सूरज को चांद में बदल सकती है
और चांद को कर सकती है गायब।
जिस अपराधी ने पुलिस से सांठगांठ कर ली
समझो मौज हो गई उसकी जीवन में
वह दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता जाएगा
और शर्तों की उल्लंघना से बाहर जाते ही बेमौत मारा जाएगा
किन्तु कोई सभ्य नागरिक पुलिस से दोस्ती कर लेता है
तो समझो वह अपने जीवन में नरक भर लेता है
चूंकि पुलिस की दोस्ती भी उतनी ही खराब है जितनी दुश्मनी
पुलिस ने आपकी देहरी के अंदर झांक लिया
तो समझो आपको आंक लिया
तब कलह आपकी जीवन संगिनी हो जाएगी
ज़िन्दगी, दुष्ट प्रेमी पुलिस की बंदिनी हो जाएगी।
पुलिस उस शह का नाम है
जिसके एक हाथ में है मात और दूसरे में मौत
शर्मदार तो पुलिस का साया पड़ते ही आधा मर जाता है
मेरा मानना है पुलिस ही बनाती है आदमी को
चोर, बदमाश, स्मगलर, डॉन, माफिया
इसीलिए कहता हूं
शरीफ आदमी को पुलिस से आंख नहीं मिलानी चाहिए
पुलिस से आंख मिलते ही
शरीफ आदमी शरीफ नहीं रहता
चौकी-थाने में उसकी डायरी खुल जाती है
कुल जाति लिख जाती है
और कुंडली में शनि की साढ़ेसाती शुरू हो जाती है
फिर परिवार की आय परिवार नहीं, पुलिस खाती है।
पुलिस रक्षक है :
उनके लिए जो अपनी रक्षा खुद करना जानते हैं
पुलिस भक्षक है :
उनके लिए जो अवैध धंधा करते हैं और नहीं देते पुलिस को हिस्सा
पुलिस तक्षक है :
उनके लिए जो न वैध धंधा करते हैं न अवैध पर चाहते हैं सुरक्षा
कोई पुलिस वाला न सुन ले
इसलिए इस पुलिस कथा को अब यहीं विश्राम देते हैं
और प्रस्थान लेते हैं
नमस्कार!
No comments:
Post a Comment