Saturday, 17 March 2012

तलाश एक संपादक की


दोस्तो!
मेरे देश में बेतहाशा भीड़ बढ़ गई है समाचारों की
गलियों, बाज़ारों, चौराहों पर
जहां ज़िंदगी को ढोया जाता है उन राहों पर
बेढब, अनगढ़ समाचार ही समाचार दिखाई देते हैं
समाचार--
चलते-फिरते, भागते-दौड़ते हुए
रोते-हंसते, खरीदते-बिकते हुए
लड़ते-झगड़ते, नारे लगाते हुए
चीखते-चिल्लाते, तोड़ते-फोड़ते हुए
नाचते-गाते, दलाली करते हुए
गद्दारी, खुद्दारी, दिलदारी में डूबे हुए।

दोस्तो!
समाचार बस समाचार होता है
संवर जाए तो खास होता है
असरदार होता है
वर्ना आम होता है
बेकाम और बेदाम होता है
मेरे देश को अर्से से
ज़रूरत है एक अच्छे संपादक की
जो हम भटकते समाचारों को संवारे-सुधारे
समय के अनुकूल निखारे।

दोस्तो!
आप भी तो इस भीड़ का हिस्सा हैं
आप भी तो बनना चाहते हैं सुगढ़ समाचार
तो आइए जुट जाइए मेरी ही तरह
एक सुयोग्य संपादक की तलाश में
जो हमारे देश के समाचारों को
संवारे, निखारे, सुधारे
और समय के अखबार में उपयुक्त महत्व दिलाए।

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