Saturday, 10 March 2012

नहीं चाहिए मुझे तीव्र गति विनाश की


मेरी साइकिल मुझको ढोती है
जैसे हवा ढोती है बादलों को
कभी-कभी मैं भी ढोता हूं साइकिल को
जैसे मरीज को ढोते हैं परिजन
बद से बदतर हो राह भले
चिड़चिड़ाते-झींकते
हर हाल में साथ देती है मेरी साइकिल
जैसे हो अर्धांगिनी
मैं हारता नहीं हिम्मत मंजिल से
साइकिल जो मेरे साथ होती है
वह जिम है मेरे लिए
नित्य मुझे कसरत कराती है
चुस्त रखती है
आलस्य दूर भगाती है
प्रकृति से रूबरू कराती है
दुनिया के नजारे दिखाती है
जब भी मैंने की है उसकी उपेक्षा
उसने मुझे चुटैल कर समझाया है--
हमसफर जिसको बनाओ
अंत तक उसका साथ निभाओ
जमाना पल-पल रंग बदलता है
पर रंग अपना नहीं बदलती मेरी साइकिल
नहीं करती स्पर्धा वह किसी भी वाहन से
संतुष्ट है वह अपने-आपसे
कहती है धुरी हूं मैं विकास की
नहीं चाहिए मुझे तीव्र गति विनाश की।

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