Wednesday, 28 March 2012

राष्ट्र को राष्ट्रभाषा का ताज पहनाओ


मेरे राजनीतिक भाई!
तुमने हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी को कहां धकेल दिया
क्यों नहीं उसको उसका सही स्थान दिया?
स्वाधीनता के संघर्ष में
गंगा-जमुनी हिन्दी ही बनी थी देश की संपर्क भाषा
पूरे देश ने हिन्दी को अपनाया था
हिन्दी के नेतृत्व ने
वंदेमातरम्!
इंकलाब ज़िदाबाद!
अंग्रेज़ो भारत छोड़ो! का अलख जगाया था
सामूहिक आंदोलन चले थे पूरे देश में
हम मिलकर गरजे-गरियाए थे अंग्रेज़ी सत्ता के खिलाफ
हमारी एकता रंग लाई
गुलामी से मुक्ति मिली
तिरंगा फहराया
लोकतंत्र कायम हुआ देश में
तुम और तुम्हारे साथियों ने राजकाज संभाला
उम्मीद जगी थी कि हिदीमय हो जाएगा देश
किन्तु कुछ नहीं बदला
हमने अनेक बार किए प्रदर्शन
तब तुमने हिन्दी को राजभाषा घोषित किया
किन्तु संविधान में
अंग्रेज़ी को धीरे-धीरे हटाने का नुक्ता जोड़ दिया
राजकाज में नहीं उतारी तुमने हिन्दी
तुम सत्ता के मद में खो गए
भूल गए कि हिन्दी को विज्ञान से है जोड़ना
न्याय की प्रक्रिया में है मोड़ना
रोज़ी-रोटी के साधनों में ढालना।

मेरे राजनीतिक भाई!
कभी तुम अपनों के बीच गर्व से कहा करते थे
हिन्दी भाषा पूर्णतया वैज्ञानिक है
इसमें जो लिखा जाए, वही बोला जाता है
कोई व्यतिक्रम या व्यायाघात नहीं होता गैर हिन्दी भाषी को
इस भाषा को कबीर और तुलसी ने निखारा है
बिहारी और देव ने संवारा है
सूरदास ने वाणी दी है इसके ममत्व को
रसखान ने जाना है इसके महत्व को
मीरा ने बजाई है इसमें नटनागर की बांसुरी
जायसी ने हटाई है धुध आसुरी
महादेवी ने भरे हैं भाव इसमें नरम मोम से
निराला ने मिलाया है इसे व्योम से
भारतेन्दु ने सरजी है इसे नई सर्जना
दिनकर ने दी है इसे हुकार-गर्जना
इसमें पीर पर्वत-सी लिखी दुष्यंत ने
प्रकृति का प्रेम भर दिया इसमें पंत ने
किन्तु तुम्हारी कथनी और करनी में अंतर रहा।

मेरे राजनीतिक भाई!
तुमने नहीं दिया हिन्दी को उसका सम्मान
हिन्दी अपने ही घर में हो गई है मोहताज
आज अंग्रेज़ी में ही हैं रोजगार के मुख्य साधन
अंग्रेज़ी में ही होता है राजकाज
अंग्रेज़ी में हो रहे हैं अदालत के फैसले
बेगानापन लिए भौचक है आमजन
जाग जाओ भाई
राष्ट्र को राष्ट्र की भाषा का ताज  पहनाओ
हिन्दी भाषा को अपनाओ।


No comments:

Post a Comment