Thursday, 15 March 2012

समाज और व्यक्ति का गणित


एक व्यक्ति की मृत्यु पर सहस्रों देह हो जाती हैं मृत्यु को प्राप्त
सहस्रों देहों को मिल जाता है नवजीवन
प्रकृति का है अपना अनूठा चलन
समाज का है अपना चलन।

व्यक्ति के व्यक्तित्व का अन्तर है समाज में
कभी एक व्यक्ति की मृत्यु पर होती है समाज में एक उपभोक्ता की मृत्यु
कभी एक व्यक्ति की मृत्यु पर बाजार में आ जाता है भूचाल
सहस्रों व्यक्ति हो जाते हैं मृत्यु को प्राप्त
या पहुंच जाते हैं मरणासन्न स्थिति में
सेंसेक्स हो जाता है धराशायी।

उधर देखो,
धुध में किसी वाहन से कुचल गया है कोई व्यक्ति
उसके शव को सड़क पर लीप दिया है अनेक वाहनों के टायरों ने
उसकी साइकिल, चप्पलें, टिफिन पहुंच जाएंगे अब कबाड़ी बाजार में
टिफिन का बिखरा खाना खा रहा है आवारा बछड़ा
चौकन्ने कोए बार-बार खुरच रहे हैं सड़क पर चिपके मांस को
पुलिस वाला उस व्यक्ति के लोथड़ों को करा रहा है सील
पोस्टमार्टम के लिए
अखबार के कोने में छपेगी उसकी छोटी-सी खबर
संभव है अज्ञात के रूप में।

और उधर देखो सड़क पार सामने
पीली कोठी पर मच रहा है रुदन
बाबूजी नहीं रहे!
बाबूजी जिनके गणित ने
मामूली कारोबार को पहुंचा दिया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
छोटे-से संस्थान को बदल दिया औद्योगिक साम्राज्य में
जिन्होंने राजकाज संबंधी सभी अफसरों और कारिंदों को रखा खुश
सभी राजनीतिक दलों को दिल खोलकर दिया चंदा
जिन्होंने किसी भी राज के किसी भी ‘राज’ को
कभी भी नहीं लिया मुफ्त
दरियादिली की मिसाल थे बाबूजी
जब भी किसी नेता या अफसर ने की कोई फरमाइश
बात पूरी होने से पहले ही पूरी कर देते थे बाबूजी।

बाबूजी उठते थे हिन्दुस्तान में
सोते थे इंगलिस्तान में
हवाईयात्रा में ही सहस्रों लोगों के खून-पसीने, आंसू की धाराओं को
सोख लेते थे अपनी कलम से
कभी कोई पत्ता नहीं हिला बाबूजी के सामने
कभी कोई नहीं कर सका गिला बाबूजी के सामने।

बहुत उदार और धार्मिक थे बाबूजी
उनकी सेवा में जो भी रही बालाएं
उन्होंने उन सबकी दूर की बाधाएं
दान-दक्षिणा देना उनका था नित्य कर्म
बनवाईं उन्होंने दर्जनों गौशालाएं, धर्मशालाएं।

बहुत शहनशील थे बाबूजी
कोई क्या झेलेगा उनके जितनी बीमारियां
कोन-सा रोग नहीं था बाबूजी को
क्या कहें कौन-सी बीमारी मौत बन गई रात में उनके लिए
देर रात तक यात्रा में अपनों से की थी बाबूजी ने मंत्रणा
सोए थे हंसते हुए।

बाबूजी की आंख मुदते ही
सेंसेक्स धड़ाम से नीचे गिरा है बारह सौ अंक
आगे भी लगता है उसकी चाल लड़खड़ाएगी ही
हजारों लोग हो गए हैं कंगाल, मारे जाएंगे बेमौत।

अखबारों में पूरे-पूरे पेज बुक हो गए हैं उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए
मुख्य खबर भी अखबार की बाबूजी ही बनेंगे।

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