मैं युग-युगों से शापित बेबस बीज
अभागा हूं, चिर अभागा
सालते हैं मुझे
भू पर लहकते शैशवों के कलरव
कचोटती हैं उनकी अठखेलियां
मैं भी चूमना चाहता हूं
लहलहाते-महमहाते
अपने अंशज शैशव को
अपने प्रतिबिम्ब को
देना चाहता हूं
संपत्ति अनुभव की
अपने उत्तराधिकारी को
किन्तु यह असंभव है
बिलकुल असंभव
चूंकि मेरे उत्तराधिकारी का जन्म
मेरी मृत्यु के बाद होगा
मैं अभागा हूं, चिर अभागा।
No comments:
Post a Comment