Monday, 26 March 2012

मेरे अन्दर का जानवर


मेरे अन्दर के जानवर ने
अनेक बार मुझे नीचा दिखाया है
जब से मैंने होश संभाला है
मेरा इससे युद्ध जारी है
ज्यादातर यही हावी रहा है मुझ पर
मैं हल्का रहा हूं
पर मैंने हिम्मत नहीं हारी है
ज़िदा है मेरा अहसास
कि मैं इंसान हूं।

मेरे अन्दर का जानवर
वहशी है और डरपोक भी
अपनी शैतानियत ये ललचाता और फंसाता रहा है मुझे
हंगामा बरपा है जब भी कभी मुझ पर
यह दुम दबाकर भाग  गया है वहां से
मैं प्रगति की सीढ़ियों के नीचे गिरा हूं
हर बार इसने मुझ पर व्यंग्य किया है कि मैं सिरफिरा हूं
मैंने पकड़ ली है इसकी कमजोरी
यह किताब से डरता है
जब-जब किताब होती है मेरे हाथ में
यह से व्यंग्य करता है
गिर-गिर कर संभालता आया हूं मैं अपने को
उम्मीद है अब नहीं गिरूंगा
जब तक अपने अंन्दर के जानवर को नहीं मार दूंगा
मैं नहीं मरूंगा
अब मेरे चारों ओर किताबें हैं
मैं किताबों के अध्ययन में डूबा हूं
मेर हाथ में भी है किताब
खत्म होने वाला है अब मेरे दुश्मन का हिसाब
मेरा अन्दर का जानवर अब लुंज-पुंज हो गया है
धीमी-धीमी सांसें चल रही हैं उसकी।

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