मैं आदम पुत्र
तुम्हारा ऋणी हूं अपराजिता
सुगंधित किए तुमने मेरे जीवन के अनगिन क्षण
मैं जब भी थका
तुमने मेरी थकन को फींच दिया
मन को दिए गए नए-नए आयाम
मेरे तेज की रश्मियों को
अपने अंतस में ठहराया/अपनाया
द्विगुणित कर जन्माया
और अब तुम
उसे ही पल्लवित करने में हो मगन
किन्तु मैं अब संतप्त हूं प्रिये!
तुम अब अपने सलोने अंशज में ही खोई रहती हो
मुझसे दूर रहती हो
हे गंधे!
आओ फिर प्रेम करें
स्मृतियों को पुनर्जीवित करें।
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