फिर जरूरत ही नहीं पड़ेगी किसी को किसी से युद्ध करने की
धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा जिन्दगी जीने का विचार
आग ही आग रह जाएगी पृथ्वी के आंचल में
आग में दहकती आग
राख में चहकती आग
समुद्र में उबलती आग
हवाओं में मचलती आग
आकाश से बरसती आग
ऊपर-नीचे चारों ओर होगी आग ही आग
सबकुछ जल जाएगा आग में
सबकुछ मिट जाएगा आग से
न राष्ट्राध्यक्ष बचेगा कोई
न नागरिक
न होगी जिन्दगी
न होगी बन्दगी।
खूब-खूब रोएगा आकाश सूनी पृथ्वी को देखकर
फट-फट जाएगी पृथ्वी की छाती
डबडबाई हवा भटकेगी हरियाली के लिए
जल-जीव विहीन समुद्र हहराएगा बतरस के लिए
हर ओर हागा श्मशान-सा सन्नाटा
जिन्दगी कहीं नहीं होगी।
दौड़ रही हैं इसी भयावहता की ओर
दुनिया की तानाशाह और जिद्दी सरकारें
दांव पर लगी हैं असंख्यों-असंख्य जिन्दगियां और उनके गीत
जल्दी ही किसी बांसुरी से नहीं निकली कोई मधुर धुन
दृष्टि और शब्दों में नहीं घुली मिठास
आग और धुएं की यदि नहीं रुकी अंधी दौड़
तो!
आतिशबाजी में जल जाएंगे सबके सब आतिशबाज
उनके सपनों के साथ जल जाएगा उनका गुरूर भी
रह जाएगी सिर्फ राख में दबी आग।
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