ध्यान से देखो गुबरैले के अथक परिश्रम को
समझो चींटी की लगन को
महसूसो प्रवासी पक्षियों के हौसले को
तोलो मधुमक्खियों की तन्मयता को
और मापो बया की निपुणता को।
पढ़ो मन की डायरी को
सोचो कि कहां गई तुम्हारी शिशु वाली निश्छलता?
विचारो कि रिश्तों में गुणा-भाग क्यों आया?
निरखो कि तुम जहां से चले थे, वहां भी मौजूद क्यों नहीं हो?
जानो कि मां की आंखों में आजन्म क्यों रहती है ममता?
छांव सदा ही नहीं रहती
जुड़ी है वह धूप से
यात्री के पांव के नीचे बदलती रहती है जमीन
रोपे गए पौधे महकते और फलते हैं बाद में भी।
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