Sunday, 19 February 2012

मेरा अस्तित्व और स्त्री


मेरे विचारों से स्त्री कभी गायब नहीं होती
मैं स्त्री के भीतर जी रहा हूं
स्त्री मेरे भीतर।

प्रकृति के रूप में
शक्ति के रूप में
ऊर्जा के रूप में
मैंने स्त्री को ही पाया है
स्त्री ने ही दिया है मुझे जन्म
जिन्दा रहता है यह अहसास हर वक्त मेरे भीतर
मैं स्त्री की ही गोद में बड़ा हुआ हूं
स्त्री की ही अंगुली पकड़कर खड़ा होना सीखा हूं
स्त्री के ममत्व ने ही सिखाया है मुझे खिलखिलाना
स्त्री के दुग्धपान से ही पाई है मैंने जीवटता
मुझे स्त्री ने ही बताया है आग और पानी का फर्क
स्त्री ही ने दी मुझे भाषा की अभिव्यक्ति
स्त्री ही रही है मेरी पहली पाठशाला
स्त्री का ही विस्तार पाया है मैंने प्रकृति में।

किशोरावस्था में भी स्त्री-स्वर था मुझे कर्णप्रिय
खींचता है मन को स्त्री जाति का आकर्षण
देह और आंखों की भाषा भी मैंने स्त्री से ही सीखी
स्त्री के गुरुत्वाकर्षण ने ही संभाला मुझे युवावस्था में
स्त्री ने ही बांधा मेरे यायावरी मन को
स्त्री ने ही शक्ति दी मुझे समस्याओं से जूझने की
स्त्री के संस्पर्श ने ही भरी है मुझमें ऊर्जा
स्त्री ने ही बनाया है मुझे पूर्ण पुरुष
स्त्री ने ही बनी है मेरी नींद और जागरण
स्त्री ही बनी है मेरी जीवन-सहयात्री
स्त्री ने ही दिया है मुझे परिवार
कैसे विलग कर दूंविचारों से स्त्री को
स्त्री ही है मेरी कामधेनु।

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