Monday, 27 February 2012

कहीं कुछ जल रहा है!


जनाब!
हवा की गंध कहती है
कहीं कुछ जल रहा है!
पल-पल बदलते आपके तेवर बताते हैं
आपको कुछ खल रहा है।

अंतरिक्ष ने परोस दिए हैं शिगूफे
हांफने लगा है शेयर बाजार
तोल रहे हैं अपने डैने
अट्टालिकाओं में धंसे गिद्ध
जाहिर है कुछ अजूबा चल रहा है
मुझे तो लगता है
कोई नया मरघट ढल रहा है।

जनाब!
आंदोलनरत है सड़कों पर
गुस्साए लोगों की भीड़
चिल्ला रही है--शेम! शेम! शेम!
बाज आओ अंकल सेम!
ये साम्राज्यवादी दादागिरी नहीं चलेगी!
कुछ तो बताइए जनाब!
यह क्या चल रहा है?
आपके राजधर्म में क्या उबल रहा है?
कुछ समझ नहीं आता
अपना देश स्वतंत्र है या ओढ़े हुए है स्वतंत्रता का चेहरा!
क्यों बना हुआ है यह साम्राज्यवादियों का मोहरा
कौन किस पर दांव चल रहा है?

जनाब!
मैं तो दूसरों को डराने के लिए
आपका ही खड़ा किया हुआ, बेजान बिजूका हूं
मुझसे न डरें, सच बताएं--
आपके मन में क्या मचल रहा है?

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