सहस्रों वर्ष पूर्व
समाज में लड़कियां जवान होतीं
प्रेम करतीं और अपना-अपना घर बसा लेतीं
किसी से कोई विवाद नहीं होता
संबंध निभता तो चलता रहता
नहीं निभता तो टूट जाता
नए संबंधों की डगर फिर चल पड़ती।
समाज में तथाकथित समझदारी आई
लोगों ने अपने परिवारों को अलग-अलग पहचान दी
कोई परिवार पगड़ी के नाम से जाना जाने लगा
कोई तिलक-चंदन से
किसी ने अपने परिवार को तलवार की पहचान दी
किसी ने खुरपी की तो किसी ने हल की
इस तरह चांदी, सोना, तसला, फावड़ा, रुपया, नाव, चारपाई,
झाड़ू, घड़ा, चमड़ा, सींग, पूंछ
अलग-अलग पहचान हो गई समाज में परिवारों की।
प्रेमियों की चर्चा तब कुछ इस तरह चलती--
चांदी परिवार की लड़की नाव-परिवार से बिंध गई
खुरपी-परिवार के लड़के ने तिलक-परिवार से नाता जोड़ लिया
तसला-परिवार की लड़की सोना-परिवार में सज गई
किसी परिवार को इससे अपनी इज्जत तार-तार होती दिखती
किसी को इज्जत में इजाफा होता दिखता
तेवर चढ़े लोगों ने पूरे समाज की पंचायत बुलाई
अपनी-अपनी व्यथा बताई
किया गया चिंतन
हुआ गहन मंथन
निष्कर्ष निकलकर आया
समाज में चार वर्ग बना दिए जाएं
चांदी, रुपया, सोना, तिलक-चंदन आदि परिवारों का एक वर्ग
पगड़ी, तलवार, हल, फावड़ा आदि परिवारों का दूसरा वर्ग
खुरपी, तसला, घड़ा, सींग आदि परिवारों का तीसरा वर्ग
झाड़ू, चमड़ा, घड़ा, सींग आदि परिवारों का चौथा वर्ग
पेशेगत वर्गीकरण के साथ तय हुआ--
लड़कियां अपने-अपने ही वर्ग में घर बसाएंगी
सीमा नहीं लांघेगा परिवार का कोई भी सदस्य।
प्रेमियों का प्रेम करना फिर भी नहीं रुका
फर्क सिर्फ इतना हुआ
पहले खुलेआम होता था प्रेम, अब छिप-छिपकर होने लगा
प्रेम प्रदर्शन के नए तरीके ईजाद कर लिए प्रेमियों ने
घर बसाने का निर्णय होते ही
वे जंगल में चले जाते
बनकर रहते जंगली
परिजन मान जाते तो घर लौट आते
हो जाते बेबस तो कर लेते आत्महत्या।
इस नई समस्या से पीड़ित परिवारों ने
फिर बुलाई समाज की पंचायत
फिर हुआ चिंतन-मनन
तय हुआ सभी परिवारअपनी पहचान को जाति में बदल लें
पुरुष की पहचान जाति और वंश से होगी
स्त्री की कोई पहचान नहीं होगी
स्त्री का सिर्फ धरती की तरह इस्तेमाल होगा
स्त्री का कोई वंश नहीं होगा।
लेकिन प्रेमी युवा हर बंदिश नकारकर करते रहे प्रेम
लांघी जाती रहीं वर्ग और जाति की सीमाएं
भागते रहे प्रेमी जंगल की ओर
बेबस प्रेमी करते रहे आत्महत्या
पीड़ित परिवारों ने फिर बुलाई समाज की पंचायत
फिर तय हुए स्त्री जाति के लिए अंकुश--
लड़कियां घर से बाहर अकेल नहीं जाएंगी
विवाहित महिलाओं को घर से बाहर पर्दे में रहना होगा
घर में भी वे बड़ों से पर्दा करेंगी।
पुरुष प्रधान समाज में
आज तक जारी हैं स्त्रियों पर तरह-तरह की बंदिशें
लेकिन प्रेमियों का प्रेम करना भी जारी है।
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