भेड़िया-भेड़िया-भेड़िया!
जागे-जागो-जागो!
दौड़ो-दौड़ो-दौड़ो!
घेरो-घेरो-घेरो!
मारो-मारो-मारो!
भगाओ-भगाओ-भगाओ!
बचाओ अपने बच्चों को
घर-परिवार को
बकरी, भेड़, मेमनों को
लादो अपना सामान पलायन के लिए
पहुंचो सुरक्षित स्थान पर
जहां भेड़िए की पहुंच न हो
गड्ड-मड्ड सुनाई दे रही हैं ये विभिन्न आवाजें।
किसी को यह नहीं मालूम
भेड़िया है या भेड़िए
हुआ है कोई हादसा
या है सिर्फ आशंका
भेड़ों के रेबड़ की तरह
बदहवास भागे जा रहे हैं लोग
एक-दूसरे के पीछे
भयभीतों को देखकर
कुछ लोग और हो रहे हैं भयभीत
कुछ लोग विहंस रहे हैं
और लगा रहे हैं ठहाके
लेकिन भागमभाग नहीं थम रही।
लोगों की भीड़ सीमा पर पहुंची
उस पार भी भेड़िये के भय का यही था सिलसिला
लोग लादे असबाब आ रहे थे इस पार के लिए
बौखलाए से
थम गए सीमा पर हतप्रभ होकर
अपनी जड़ों से उखड़े लोग
जहां की तहां
संचार-साधन खड़खड़ाए, फड़फड़ाए, घनघनाए
मालूम हुआ--
हर देश, प्रदेश और शहर में छाया हुआ है समान रूप से
अनदेखे भेड़िए का आतंक।
कुछ विद्वानों ने समझाया
समझदारी का मार्ग दिखलाया
उद्योगों का निकलता अंधाधुंध धुआं
उत्सर्जित विभिन्न गैसों का सिलसिला
भेद रहा है आकाशीय सुरक्षा छत को
यानी ओजोन पर्त को
सूर्य का तापमान
भूमंडल को कर रहा है गर्म
जलवायु में हो रहा है परिवर्तन
अतिवृष्टि, सूखा और विभिन्न बीमारियां
भेड़िए की तरह
दनादन निगल रही हैं जिन्दगियां
जरूरत भागने की नहीं
जरूरत है आपदा से निपटने की
संकल्प की
जीवनशैली के कायाकल्प की।
वैज्ञानिकों के पैनल ने दी रिपोर्ट
विकसित देशों का अत्यधिक प्रकृति-दोहन
आधुनिक जीवन शैली
जिम्मेदार है बहुलता से हानिकारक गैसों के उत्सर्जन की
बहुतायत में कार्बन-डाइ-आक्साइड के जनन की
ढूंढ़ने होंगे ऊर्जा के नए स्रोत
करना होगा सभी देशों को प्रण
कि ग्रीनहाउस गैसों पर रखेंगे आनुपातिक नियंत्रण।
विकसित देशों के वैज्ञानिकों के अपने तर्क हैं
दायरे के हित में उनके अपने निष्कर्ष हैं
नहीं हैं तैयार वे गति पर नियंत्रण को
ठुकरा रहे हैं समझौते के हर आमंत्रण को
वे कह रहे हैं डंके की चोट
नहीं है उनकी नीयत में खोट
उनका है तर्क--
यदि प्रकृति का दोहन नहीं किया जाएगा
तो मानव अविकसित युग में लौट जाएगा।
मतभेद की कांव-कांव जारी है
पूरी दुनिया में भेड़िए का भय तारी है
भेड़िया-भेड़िया-भेड़िया!
जागो-जागो-जागो!
दौड़ो-दौड़ो-दौड़ो!